साधारण
1[264. निर्वचन--इस भाग में, ''वित्त आयोग'' से अनुच्छेद 280 के अधीन गठित वित्त आयोग अभिप्रेत है।
265. विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना
कोई कर विधि के प्राधिकार से ही अधिरोपित या संगृहीत किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
266. भारत और राज्यों की संचित निधियाँ और लोक लेखे
(1) अनुच्छेद 267 के उपबंधों के तथा कुछ करों और शुल्कों के शुद्ध आगम पूर्णतः या भागतः राज्यों को सौंप दिए जाने के संबंध में इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियाँ निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो ''भारत की संचित निधि'' के नाम से ज्ञात होगी तथा किसी राज्य सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियाँ निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो ''राज्य की संचित निधि'' के नाम से ज्ञात होगी।
(2) भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक धनराशियाँ, यथास्थिति, भारत के लोक लेखे में या राज्य के लोक लेखे में जमा की जाएँगी।
(3) भारत की संचित निधि या राज्य की संचित निधि में से कोई धनराशियाँ विधि के अनुसार तथा इस संविधान में उपबंधित प्रयोजनों के लिए और रीति से ही विनियोजित की जाएँगी, अन्यथा नहीं।
267. आकस्मिकता निधि
(1) संसद, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगी जो ''भारत की आकस्मिकता निधि'' के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा अवधारित राशियाँ समय-समय पर जमा की जाएँगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 115 या अनुच्छेद 116 के अधीन संसद द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राष्ट्रपति को समर्थ बनाने के लिए उक्त निधि राष्ट्रपति के व्ययनाधीन रखी जाएगी।
(2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगा जो ''राज्य की आकस्मिकता निधि'' के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा अवधारित राशियाँ समय-समय पर जमा की जाएँगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 205 या अनुच्छेद 206 के अधीन राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राज्यपाल को समर्थ बनाने के लिए उक्त निधि राज्य के राज्यपाल 2*** के व्ययनाधीन रखी जाएगी।
संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण
268. संघ द्वारा उद्गृहीत किए जाने वाले किंतु राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किए जाने वाले शुल्क
(1) ऐसे स्टांप-शुल्क तथा औषधीय और प्रसाधन निर्मितियों पर ऐसे उत्पाद-शुल्क, जो संघ सूची में वर्णित हैं, भारत सरकार द्वारा उद्ग्रहीत किए जाएँगे, किंतु --
(क) उस दशा में, जिसमें ऐसे शुल्क 3[संघ राज्यक्षेत्र के भीतर उद्ग्रहणीय हैं भारत सरकार द्वारा, और
(ख) अन्य दशाओं में जिन-जिन राज्यों के भीतर ऐसे शुल्क उद्ग्रहणीय हैं, उन-उन राज्यों द्वारा, संगृहीत किए जाएँगे।
(2) किसी राज्य के भीतर उद्ग्रहणीय किसी ऐसे शुल्क के किसी वित्तीय वर्ष में आगम, भारत की संचित निधि के भाग नहीं होंगे, किन्तु उस राज्य को सौंप दिए जाएँगे।
1[268क. संघ द्वारा उद्गृहीत किए जाने वाला और संघ तथा राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किया जाने वाला सेवा-कर
(1) सेवाओं पर कर भारत सरकार द्वारा उद्गृहीत किए जाएँगे और ऐसा कर खंड (2) में उपबंधित रीति से भारत सरकार तथा राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किया जाएगा।
(2) किसी वित्तीय वर्ष में, खंड (1) के उपबंध के अनुसार, उद्गृहीत ऐसे किसी कर के आगमों का--
(क) भारत सरकार और राज्यों द्वारा संग्रहण;
(ख) भारत सरकार और राज्यों द्वारा विनियोजन,
संग्रहण और विनियोजन के ऐसे सिद्धान्तों के अनुसार किया जाएगा, जिन्हें संसद विधि द्वारा बनाए।
269. संघ द्वारा उद्गृहीत और संगृहीत किंतु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर
2[(1) माल के क्रय या विक्रय पर कर और माल के परेषण पर कर, भारत सरकार द्वारा उद्गृहीत और संगृहीत किए जाएँगे किन्तु खंड (2) में उपबंधित रीति से राज्यों को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात् सौंप दिए जाएँगे या सौंप दिए गए समझे जाएँगे।
स्पष्टीकरण
इस खंड के प्रयोजनों के लिए
(क) ''माल के क्रय या विक्रय पर कर'' पद से समाचारपत्रों से भिन्न माल के क्रय या विक्रय पर उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा क्रय या विक्रय अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है ;
(ख) ''माल के परेषण पर कर'' पद से माल के परेषण पर (चाहे प्रेषण उसके करने वाले व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को किया गया हो) उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा प्रेषण अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है।
(2) किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे कर के शुद्ध आगम वहाँ तक के सिवाय, जहाँ तक वे आगम संघ राज्यक्षेत्रों से प्राप्त हुए आगम माने जा सकते हैं, भारत की संचित निधि के भाग नहीं होंगे, किंतु उन राज्यों को सौंप दिए जाएँगे जिनके भीतर वह कर उस वर्ष में उद्ग्रहणीय हैं और वितरण के ऐसे सिद्धांतों के अनुसार, जो संसद विधि द्वारा बनाए, उन राज्यों के बीच वितरित किए जाएँगे।
3[(3) संसद, यह अवधारित करने के लिए कि 4[माल का क्रय या विक्रय या प्रेषण] कब अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है, विधि द्वारा सिद्धांत बना सकेगी।
292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना
संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, भारत की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें संसद समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है।
293. राज्यों द्वारा उधार लेना
(1) इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उस राज्य की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें ऐसे राज्य का विधान-मंडल समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है।
(2) भारत सरकार, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन अधिकथित की जाएँ, किसी राज्य को उधार दे सकेगी या जहाँ तक अनुच्छेद 292 के अधीन नियत किन्हीं सीमाओं का उल्लंघन नहीं होता है वहाँ तक किसी ऐसे राज्य द्वारा लिए गए उधारों के संबंध में प्रत्याभूति दे सकेगी और ऐसे उधार देने के प्रयोजन के लिए अपेक्षित राशियाँ भारत की संचित निधि पर भारित की जाएँगी।
(3) यदि किसी ऐसे उधार का, जो भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने उस राज्य को दिया था अथवा जिसके संबंध में भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने प्रत्याभूति दी थी, कोई भाग अभी भी बकाया है तो वह राज्य, भारत सरकार की सहमति के बिना कोई उधार नहीं ले सकेगा।
(4) खंड (3) के अधीन सहमति उन शर्तों के अधीन, यदि कोई हो, दी जा सकेगी जिन्हें भारत सरकार अधिरोपित करना ठीक समझे।
1[264. निर्वचन--इस भाग में, ''वित्त आयोग'' से अनुच्छेद 280 के अधीन गठित वित्त आयोग अभिप्रेत है।
265. विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना
कोई कर विधि के प्राधिकार से ही अधिरोपित या संगृहीत किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
266. भारत और राज्यों की संचित निधियाँ और लोक लेखे
(1) अनुच्छेद 267 के उपबंधों के तथा कुछ करों और शुल्कों के शुद्ध आगम पूर्णतः या भागतः राज्यों को सौंप दिए जाने के संबंध में इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियाँ निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो ''भारत की संचित निधि'' के नाम से ज्ञात होगी तथा किसी राज्य सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियाँ निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो ''राज्य की संचित निधि'' के नाम से ज्ञात होगी।
(2) भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक धनराशियाँ, यथास्थिति, भारत के लोक लेखे में या राज्य के लोक लेखे में जमा की जाएँगी।
(3) भारत की संचित निधि या राज्य की संचित निधि में से कोई धनराशियाँ विधि के अनुसार तथा इस संविधान में उपबंधित प्रयोजनों के लिए और रीति से ही विनियोजित की जाएँगी, अन्यथा नहीं।
267. आकस्मिकता निधि
(1) संसद, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगी जो ''भारत की आकस्मिकता निधि'' के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा अवधारित राशियाँ समय-समय पर जमा की जाएँगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 115 या अनुच्छेद 116 के अधीन संसद द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राष्ट्रपति को समर्थ बनाने के लिए उक्त निधि राष्ट्रपति के व्ययनाधीन रखी जाएगी।
(2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगा जो ''राज्य की आकस्मिकता निधि'' के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा अवधारित राशियाँ समय-समय पर जमा की जाएँगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 205 या अनुच्छेद 206 के अधीन राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राज्यपाल को समर्थ बनाने के लिए उक्त निधि राज्य के राज्यपाल 2*** के व्ययनाधीन रखी जाएगी।
संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण
268. संघ द्वारा उद्गृहीत किए जाने वाले किंतु राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किए जाने वाले शुल्क
(1) ऐसे स्टांप-शुल्क तथा औषधीय और प्रसाधन निर्मितियों पर ऐसे उत्पाद-शुल्क, जो संघ सूची में वर्णित हैं, भारत सरकार द्वारा उद्ग्रहीत किए जाएँगे, किंतु --
(क) उस दशा में, जिसमें ऐसे शुल्क 3[संघ राज्यक्षेत्र के भीतर उद्ग्रहणीय हैं भारत सरकार द्वारा, और
(ख) अन्य दशाओं में जिन-जिन राज्यों के भीतर ऐसे शुल्क उद्ग्रहणीय हैं, उन-उन राज्यों द्वारा, संगृहीत किए जाएँगे।
(2) किसी राज्य के भीतर उद्ग्रहणीय किसी ऐसे शुल्क के किसी वित्तीय वर्ष में आगम, भारत की संचित निधि के भाग नहीं होंगे, किन्तु उस राज्य को सौंप दिए जाएँगे।
1[268क. संघ द्वारा उद्गृहीत किए जाने वाला और संघ तथा राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किया जाने वाला सेवा-कर
(1) सेवाओं पर कर भारत सरकार द्वारा उद्गृहीत किए जाएँगे और ऐसा कर खंड (2) में उपबंधित रीति से भारत सरकार तथा राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किया जाएगा।
(2) किसी वित्तीय वर्ष में, खंड (1) के उपबंध के अनुसार, उद्गृहीत ऐसे किसी कर के आगमों का--
(क) भारत सरकार और राज्यों द्वारा संग्रहण;
(ख) भारत सरकार और राज्यों द्वारा विनियोजन,
संग्रहण और विनियोजन के ऐसे सिद्धान्तों के अनुसार किया जाएगा, जिन्हें संसद विधि द्वारा बनाए।
269. संघ द्वारा उद्गृहीत और संगृहीत किंतु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर
2[(1) माल के क्रय या विक्रय पर कर और माल के परेषण पर कर, भारत सरकार द्वारा उद्गृहीत और संगृहीत किए जाएँगे किन्तु खंड (2) में उपबंधित रीति से राज्यों को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात् सौंप दिए जाएँगे या सौंप दिए गए समझे जाएँगे।
स्पष्टीकरण
इस खंड के प्रयोजनों के लिए
(क) ''माल के क्रय या विक्रय पर कर'' पद से समाचारपत्रों से भिन्न माल के क्रय या विक्रय पर उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा क्रय या विक्रय अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है ;
(ख) ''माल के परेषण पर कर'' पद से माल के परेषण पर (चाहे प्रेषण उसके करने वाले व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को किया गया हो) उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा प्रेषण अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है।
(2) किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे कर के शुद्ध आगम वहाँ तक के सिवाय, जहाँ तक वे आगम संघ राज्यक्षेत्रों से प्राप्त हुए आगम माने जा सकते हैं, भारत की संचित निधि के भाग नहीं होंगे, किंतु उन राज्यों को सौंप दिए जाएँगे जिनके भीतर वह कर उस वर्ष में उद्ग्रहणीय हैं और वितरण के ऐसे सिद्धांतों के अनुसार, जो संसद विधि द्वारा बनाए, उन राज्यों के बीच वितरित किए जाएँगे।
3[(3) संसद, यह अवधारित करने के लिए कि 4[माल का क्रय या विक्रय या प्रेषण] कब अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है, विधि द्वारा सिद्धांत बना सकेगी।
292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना
संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, भारत की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें संसद समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है।
293. राज्यों द्वारा उधार लेना
(1) इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उस राज्य की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें ऐसे राज्य का विधान-मंडल समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है।
(2) भारत सरकार, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन अधिकथित की जाएँ, किसी राज्य को उधार दे सकेगी या जहाँ तक अनुच्छेद 292 के अधीन नियत किन्हीं सीमाओं का उल्लंघन नहीं होता है वहाँ तक किसी ऐसे राज्य द्वारा लिए गए उधारों के संबंध में प्रत्याभूति दे सकेगी और ऐसे उधार देने के प्रयोजन के लिए अपेक्षित राशियाँ भारत की संचित निधि पर भारित की जाएँगी।
(3) यदि किसी ऐसे उधार का, जो भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने उस राज्य को दिया था अथवा जिसके संबंध में भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने प्रत्याभूति दी थी, कोई भाग अभी भी बकाया है तो वह राज्य, भारत सरकार की सहमति के बिना कोई उधार नहीं ले सकेगा।
(4) खंड (3) के अधीन सहमति उन शर्तों के अधीन, यदि कोई हो, दी जा सकेगी जिन्हें भारत सरकार अधिरोपित करना ठीक समझे।
294. कुछ दशाओं में संपत्ति, आस्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार—इस संविधान के प्रारंभ से ही
(क) जो संपत्ति और आस्तियाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की सरकार के प्रयोजनों के लिए हिज मजेस्टी में निहित थीं और जो संपत्ति और आस्तियाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रांत की सरकार के प्रयोजनों के लिए हिज मजेस्टी में निहित थीं, वे सभी इस संविधान के प्रारंभ से पहले पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब प्रांतों के सृजन के कारण किए गए या किए जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः संघ और तत्स्थानी राज्य में निहित होंगी; और
(ख) जो अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ भारत डोमिनियन की सरकार की और प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रांत की सरकार की थीं, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्भूत हुई हों, वे सभी इस संविधान के प्रारंभ से पहले पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब प्रांतों के सृजन के कारण किए गए या किए जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः भारत सरकार और प्रत्येक तत्स्थानी राज्य की सरकार के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ होंगी।
295. अन्य दशाओं में संपत्ति, आस्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार
(1) इस संविधान के प्रारंभ से ही --
(क) जो संपत्ति और आस्तियाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य में निहित थीं, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस निमित्त उस राज्य की सरकार से करे, संघ में निहित होंगी यदि वे प्रयोजन जिनके लिए ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसी संपत्ति और आस्तियाँ धारित थीं, तत्पश्चात् संघ सूची में प्रगणित किसी विषय से संबंधित संघ के प्रयोजन हों, और
(ख) जो अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य की सरकार की थीं, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्भूत हुई हों, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस निमित्त उस राज्य की सरकार से करे, भारत सरकार के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ होंगी यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसे अधिकार अर्जित किए गए थे अथवा ऐसे दायित्व या बाध्यताएँ उपगत की गई थीं, तत्पश्चात् संघ सूची में प्रगणित किसी विषय से संबंधित भारत सरकार के प्रयोजन हों।
(2) जैसा।पर कहा गया है उसके अधीन रहते हुए, पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट प्रत्येक राज्य की सरकार, उन सभी संपत्ति और आस्तियों तथा उन सभी अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं के संबंध में, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्भूत हुई हों, जो खंड (1) में निर्दिष्ट से भिन्न हैं, इस संविधान के प्रारंभ से ही तत्स्थानी देशी राज्य की सरकार की उत्तराधिकारी होगी।
296. राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोद्भूत संपत्ति
इसमें इसके पश्चात् यथा उपबंधित के अधीन रहते हुए, भारत के राज्यक्षेत्रों में कोई संपत्ति जो यदि यह संविधान प्रवर्तन में नहीं आया होता तो राजगामी या व्यपगत होने से या अधिकारवान् स्वामी के अभाव में स्वामीविहीन होने से, यथास्थिति, हिज मजेस्टी को या किसी देशी राज्य के शासक को प्रोद्भूत हुई होती, यदि वह संपत्ति किसी राज्य में स्थित है तो ऐसे राज्य में और किसी अन्य दशा में संघ में निहित होगी :
परंतु कोई संपत्ति, जो उस तारीख को जब वह इस प्रकार हिज मजेस्टी को या देशी राज्य के शासक को प्रोद्भूत हुई होती, भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के कब्जे या नियंत्रण में थी तब, यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए वह उस समय प्रयुक्त या धारित थीं, संघ के थे तो वह संघ में या किसी राज्य के थे तो वह उस राज्य में निहित होगी।
स्पष्टीकरण
इस अनुच्छेद में, ''शासक'' और ''देशी राज्य'' पदों के वही अर्थ हैं जो अनुच्छेद 363 में हैं।
1[297. राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मषनतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आर्थिक क्षेत्र के संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होना--
(1) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मषनतट भूमि या अनन्य आर्थिक क्षेत्र में समुद्र के नीचे की सभी भूमि, खनिज और अन्य मूल्यवान चीजें संघ में निहित होंगी और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण की जाएँगी।
(2) भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अन्य सभी संपत्ति स्रोत भी संघ में निहित होंगे और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण किए जाएँगे।
1 संविधान (चालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 2 द्वारा (27-5-1976 से) अनुच्छेद 297 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
(3) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मषनतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्रों की सीमाएँ वे होंगी जो संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएँ।
1[298. व्यापार करने आदि की शक्ति
संघ की और प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, व्यापार या कारबार करने और किसी प्रयोजन के लिए संपत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन तथा संविदा करने पर, भी होगा:
परंतु --
(क) जहाँ तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में संसद विधि बना सकती है वहाँ तक संघ की उक्त कार्यपालिका शक्ति प्रत्येक राज्य में उस राज्य के विधान के अधीन होगी ; और
(ख) जहाँ तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में राज्य का विधान-मंडल विधि बना सकता है वहाँ तक प्रत्येक राज्य की उक्त कार्यपालिका शक्ति संसद के विधान के अधीन होगी।
299. संविदाएँ--
(1) संघ की या राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करते हुए की गई सभी संविदाएँ, यथास्थिति, राष्ट्रपति द्वारा या उस राज्य के राज्यपाल 2*** द्वारा की गई कही जाएँगी और वे सभी संविदाएँ और संपत्ति संबंधी हस्तांतरण-पत्र, जो उस शक्ति का प्रयोग करते हुए किए जाएँ, राष्ट्रपति या राज्यपाल 2*** की ओर से ऐसे व्यक्तियों द्वारा और रीति से नि-पादित किए जाएँगे जिसे वह निर्दिष्ट या प्राधिकृत करे।
(2) राष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल 2*** इस संविधान के प्रयोजनों के लिए या भारत सरकार के
संबंध में इससे पूर्व प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के प्रयोजनों के लिए की गई या नि-पादित की गई किसी संविदा या हस्तांतरण-पत्र के संबंध में वैयक्तिक रूप से दायी नहीं होगा या उनमें से किसी की ओर से ऐसी संविदा या हस्तांतरण-पत्र करने या नि-पादित करने वाला व्यक्ति उसके संबंध में वैयक्तिक रूप से दायी नहीं होगा।
300. वाद और कार्यवाहियाँ
(1) भारत सरकार भारत संघ के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और किसी राज्य की सरकार उस राज्य के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और ऐसे उपबंधों के अधीन रहते हुए, जो इस संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर अधिनियमित संसद के या ऐसे राज्य के विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा किए जाएँ, वे अपने-अपने कार्यकलाप के संबंध में उसी प्रकार वाद ला सकेंगे या उन पर उसी प्रकार वाद लाया जा सकेगा जिस प्रकार, यदि यह संविधान अधिनियमित नहीं किया गया होता तो, भारत डोमिनियन और तत्स्थानी प्रांत या तत्स्थानी देशी राज्य वाद ला सकते थे या उन पर वाद लाया जा सकता था।
(2) यदि इस संविधान के प्रारंभ पर--
(क) कोई ऐसी विधिक कार्यवाहियाँ लंबित हैं जिनमें भारत डोमिनियन एक पक्षकार है तो उन कार्यवाहियों में उस डोमिनियन के स्थान पर भारत संघ प्रतिस्थापित किया गया समझा जाएगा; और
(ख) कोई ऐसी विधिक कार्यवाहियाँ लंबित हैं जिनमें कोई प्रांत या कोई देशी राज्य एक पक्षकार है तो उन कार्यवाहियों में उस प्रांत या देशी राज्य के स्थान पर तत्स्थानी राज्य प्रतिस्थापित किया गया समझा जाएगा।
3[अध्याय 4 -- संपत्ति का अधिकार
300क. विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना
किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधि के प्राधिकार से ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें